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हिन्दी सिनेमा में Zeenat Aman के 50 साल, कभी जिनके लिए थी दुनिया दीवानी

-दिनेश ठाकुर

बरसात के मौसम में जो नदियां उफान और वेग के साथ बहती हैं, समुंदर में मिलकर धीर-गंभीर लहरों में तब्दील हो जाती हैं। जीनत अमान ( Zeenat Khan ) इसी तरह धीर-गंभीर हो गई हैं। दो साल पहले सूरत में उनसे रू-ब-रू होने का मौका मिला था। पद्मिनी कोल्हापुरे के साथ वहां 'लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल नाइट' में शिरकत करने आई थीं। वो 'दम मारो दम' की बेफिक्री, वो 'चुरा लिया है तुमने जो दिल को' की शोखियां, वो 'गोया कि चुनांचे' की शरारतें, वो 'दो लफ्जों की है दिल की कहानी' के रूमानी रंग हवा हो चुके हैं। लेकिन अपने 'चांदी जैसे बालों' पर हाथ फेरते हुए उनके मुस्कुराने का अंदाज वही है। कॉन्वेंटी शैली वाली हिन्दी भी वही है। बस, कुछ सवालों को हंसकर टाल देना उनकी आदत में शामिल हो गया है।

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'मडगांव : द क्लोज्ड फाइल' की शूटिंग में व्यस्त
जीनत अमान ने हाल ही हिन्दी सिनेमा में 50 साल पूरे किए हैं (उनकी पहली हिन्दी फिल्म 'हलचल' 1971 में आई थी)। उम्र के 69 पतझड़, सावन, बसंत, बहार देख चुकीं हैं। आज भी फिल्मों में सक्रिय हैं। गुजरात में उनकी फिल्म 'मडगांव : द क्लोज्ड फाइल' की शूटिंग चल रही है। यह मर्डर मिस्ट्री अगाथा क्रिस्टी के जासूसी उपन्यासों से प्रेरित है। कभी क्रिस्टी के ही 'द अनएक्सपेक्टेड गेस्ट' पर बनी 'धुंध' में जीनत अमान ने पहली बार पारम्परिक भारतीय पत्नी का किरदार अदा किया था। लेकिन वह इस तरह के किरदारों के लिए नहीं बनी थीं। फिल्मों में उनका आगमन किसी तूफान से कम नहीं था। उन्होंने भारतीय नायिकाओं की पारम्परिक छवि को पूरी तरह उलट-पुलट दिया। उन्हें आधुनिक चेहरा दिया। यह आधुनिकता उनके पहनावे में भी झलकी और विचारों में भी। वह नायक की आंखों में आंखें डालकर 'क्या देखते हो' भी पूछती थीं और 'दुनिया की हम सारी रस्में तोड़ चले' की मुनादी भी करती थीं। बाद में परवीन बॉबी भी जीनत अमान के नक्शे-कदम पर चलीं। कुछ और नायिकाओं ने यही पगडंडी अपनाई। उस दौर में आधुनिकता की भी एक मर्यादा थी। अब तो मर्यादा के सारे तटबंध टूट चुके हैं। यानी जीनत अमान ने पर्दे पर जिस खुलेपन का सूत्रपात किया था, आजकल की ज्यादातर नायिकाएं उससे भी दस कदम आगे निकल गई हैं।

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'प्यास' का किरदार काफी हटकर
जब तक देव आनंद गॉडफादर रहे, फिल्मों में जीनत अमान की आधुनिकता ने नए-नए गुल खिलाए। फिर राज कपूर उनके गॉडफादर हुए, तो वह 'सत्यम् शिवम् सुंदरम्' हो गईं। बेशक राज कपूर की पनाह में आने के बाद उनकी अदाकारी में ज्यादा निखार आया, लेकिन सिर्फ सजावटी गुड़िया न वह पहले थीं, न बाद में बनीं। 'हरे राम हरे कृष्ण', 'यादों की बारात', 'रोटी कपड़ा और मकान', 'धरम वीर', 'डॉन', 'इंसाफ का तराजू', 'लावारिस', 'कुर्बानी' आदि में जो किरदार दिए गए, उन्होंने मेहनत और ईमानदारी से अदा किए। ओ.पी. रल्हन की 'प्यास' में उनका किरदार काफी हटकर था। यह फिल्म चलती, तो शायद वह कुछ और चुनौतियों के लिए खुद को तैयार करतीं। 'प्यास' में लता मंगेशकर की आवाज में निहायत मीठा गीत है, 'दर्द की रागिनी मुस्कुराकर छेड़ दी।'

कभी हेमा मालिनी और रेखा के लिए थीं चुनौती
एक दौर था, जब हेमा मालिनी और रेखा जैसी समकालीन नायिकाओं के लिए जीनत अमान बड़ी चुनौती हुआ करती थीं। सिनेमाघरों में उनके जलवों पर सिक्के बरसते थे और बड़़-बड़े फिल्मकार नए प्रस्तावों के साथ उनकी परिक्रमा करते रहते थे।



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