Bulbbul Movie Review: चुड़ैलों की कहानियां सुनाने वालों एक बार आइना देख लेना
मूवी : बुलबुल
स्टारकास्ट- राहुल बोस, तृप्ति डिमरी, अवनीश तिवारी
डायरेक्टर : अन्वित्ता दत्त
स्टार : 3 1/2 स्टार
नई दिल्ली। आओ एक कहानी सुनाती हूं एक ऐसी दुनिया की जहां एक औरत मंदिर में देवी है और मंदिर के बाहर बेजुंबा इंसान नजर आती है, जिसमें कोई जान समझ लें तो गनीमत है। वैसे तो दौर बदल चुका है, वक्त बदल चुका है, कहानी भी कुछ बदली है, लेकिन ये दर्द खत्म नहीं हुआ। उसी दर्द को उकेरती कहानी है बुलबुल की, जिसे अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस ने प्रोड्यूज किया है।
कहानी
कहानी है उस दौर की है, जब भारत अग्रेंजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था और औरतें अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी। फिल्म का प्लॉट एक बंगाली परिवार के आसपास घूमता है। फिल्म की शुरुआत शादी के मंडप से होती है। बैकग्राउंड में हल्का बंगाली संगीत, मंडप में बैठा पंडित, दो जुड़वा भाई और एक बच्चा।
सबकुछ तो है, बस कमी है तो उस दुल्हन की, जो आज सात फेरे लेने वाली है, अरे लेकिन दुल्हन है कहां? शादी का जोड़ा पहने 10 साल की बुलबुल मंडप में क्यों जा रही है? अरे यही तो दुल्हन है, जिसे शादी का मतलब नहीं पता वो शादी के बंधन में बंध गई। आधी रात में नींद खुली तो आंखें मां को ढूंढने लगी, इस काली रात में बुलबुल को एक हमउम्र साथी मिला, उसे लगा यही उसका पति है पर कहानी है तो कुछ और है।
10 साल की उम्र में धोखे से बुलबुल के जीवन की डोर उसे थमा दी गई, जिसकी उम्र शायद बुलबुल के पिता से भी थोड़ी ज्यादा हो। खैर बुलबुल को ना शादी का मतलब पता था और ना ही उम्र के फासलों की दरार का। उसे नजर आता था तो सिर्फ वो साथी (सत्या) जो उसे चुड़ैलों की कहानियां सुनाया करता था, फिर एक रोज चुड़ैलों से डरने वाली बुलबुल को पता चल ही गया कि क्यों दिन के उजाले में मनमोहने वाली खूबसूरती रात के अंधेरे में डर का साया बन जाती है।
एक्टिंग और डायरेक्शन
बुलबुल के पेड़ों पर चढ़ने की आदत से लेकर बिच्छू के काला जादू तक, हर एक सीन को जिस तरह जोड़ा गया है, वो वाकई में कमाल है और यकीनन इस सीरीज को नेटफिलिक्स की बेस्ट हिंदी सीरीज में से एक कहा जा सकता है। अन्वित्ता दत्त ने वो गलती नहीं की जो पाताल लोक के मेकर्स ने की थी, इसलिए फिल्म विवादित नहीं। समाजिक आइना नजर आती है, बेहतर कहानी के साथ दमदार स्क्रीनप्ले और डायलॉग एक पल के लिए आपको नजरें हटाने नहीं देते।
एक्ट्रेस तृप्ति डिमरी जो अपनी डेब्यू फिल्म लैला मजूं में लैला बनकर नहीं कर पाई, वो उन्होंने बुलबुल बनकर कर दिखाया है। यकीनन वो इस फिल्म की जान नजर आती हैं, तो वहीं राहुल बोस और अवनीश तिवारी भी फिल्म की सांसों से कम नहीं है, जिनके बिना ये फिल्म अधूरी रह जाती।
रिव्यू
काले जादू से लेकर चुड़ैलों की किस्से कहानियों को एक धागे में पीरोकर ये फिल्म उस समाज का आइना दिखाती है जो कभी खुद इंसान नहीं बन पाए और दोष चुड़ैलों को दिया करते हैं।
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