बर्थडे स्पेशल 30 जून: बॉलीवुड संगीत को नया आयाम दिया था कल्याणजी ने
नई दिल्ली। हिंदी फिल्मों के गीतों का जिक्र होते ही बॉलीवुड की मशहूर जोड़ी कल्याणजी -आनंदजी का नाम सहसा जहन में आ जाता है। बॉलीवुड की सबसे मशहूर जोड़ियों में से एक कल्याणजी -आनंदजी एक ऐसी जोड़ी है, जो एक -दूसरे के बिना अधूरे से लगते हैं। बॉलीवुड की यह फेमस जोड़ी 24 अगस्त, 2000 को कल्याणजी के निधन के साथ हमेशा के लिए अलग हो गई, लेकिन इस जोड़ी ने साथ में मिलकर बॉलीवुड गीतों को एक नया आयाम दिया और उसे ऊंचाइयों पर पहुंचाया। आज हम अपने पाठकों को कल्याणजी की 93वीं जयंती पर बता रहे हैं कल्याणजी से जुड़ी कुछ अनसुनी बातों के बारे में।
30 जून 1928 को गुजरात के कच्छ में जन्में कल्याणजी का पूरा नाम कल्याणजी वीरजी शाह था। कल्याणजी के पिता का नाम वीरजी था। एक समय पर कल्याणजी का पूरा परिवार गुजरात से मुंबई आ गया और यहां कल्याणजी के पिता ने एक किराने की दुकान खोली । उनके दुकान से एक ग्राहक सामान तो लेता लेकिन पैसे नहीं चुका पा रहा था। जब एक दिन कल्याणजी के पिता ने उधारी चुकाने के लिए कहा तो उस शख्स ने उनके दोनों बेटों कल्याणजी और आनंदजी को संगीत सिखाने की जिम्मेदारी ली। इस तरह उधारी के पैसे को चुकाने के लिए कल्याणजी को संगीत की शिक्षा मिली। इसके बाद दोनों की रुचि संगीत में बढ़ने लगी और उन्होंने तय किया कि वह संगीत की दुनिया में ही अपना भविष्य बनाएंगे।
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कल्याणजी ने अपने म्यूजिक करियर की शुरुआत क्लेवायलीन बजाकर किया था, यह वही वाद्ययंत्र है जिससे 1954 में आई फिल्म 'नागिन' में फेमस 'नागिन बीन' बजाया गया था । बाद में कल्याणजी ने अपने भाई आनंदजी के साथ मिलकर 'कल्याणजी वीरजी एंड पार्टी' नाम से एक आर्केस्ट्रा कंपनी बनाई थी जो देश के अलग -अलग हिस्सों में म्यूजिक शो परफॉर्म करती थी। धीरे- धीरे कल्याणजी -आनंदजी ने अपने म्यूजिक से हर किसी का ध्यान आकर्षित करने लगे। हर कोई अब म्यूजिक पसंद कर रहा था और उनके साथ काम करना चाहता था। विदेशों से भी कल्याणजी-आनंदजी को परफॉर्म करने के ऑफर मिलने लगे । साल 1958 में कल्याणजी ने अपनी पहली फिल्म 'सम्राट चन्द्रगुप्त' में म्यूजिक दिया जिसे काफी सराहा गया। उस फिल्म का गीत 'चाहे पास हो' लोगों की जुबान पर चढ़ गया। इसके बाद कल्याण आनंदजी ने 1960 में आई फिल्म छलिया , 1965 में आई फिल्म हिमालय की गोद में, 1970 में आई फिल्म पूरब और पश्चिम आदि कई फिल्मों में संगीत दिए और देखते -देखते संगीत की दुनिया का एक बड़ा और मशहूर नाम बन गए।
उन्होंने बॉलीवुड संगीत को नया आयाम दिया और बुलंदियों का आसमान बख्शा। साल 1968 मे प्रदर्शित फिल्म ..सरस्वती चंद्र के लिये कल्याणजी ..आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का नेशनल अवार्ड के साथ..साथ फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावा वर्ष 1974 मे प्रदर्शित कोरा कागज के लिये भी कल्याणजी..आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। कल्याणजी-आनंदजी ने एक साथ मिलकर लगभग 250 फिल्मों में संगीत दिया है, जिनमें से 17 गोल्डन जुबली और 39 सिल्वर जुबली फिल्में थी। कल्याणजी अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन संगीत जगत में दिए गए उनके योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जायेगा। कल्याणजी संगीत जगत का वह स्वर्णिम अध्याय हैं, जिन्हे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। संगीत की दुनिया में कल्याणजी का नाम सदैव आदर व सम्मान के साथ लिया जायेगा।
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